ग्रहण लग जाता है
जब तात हों साथ सबल सुत हैं
हरि धाम लगे वो कुटी जर्जर
बिन जान सदा विचरे बिन तात
अब काटन को दौड़ाए महल
सम्मुख न दिखे अश्रु की लहर
मन बेकल सुत दुःख पर प्रतिपल
वाणी नश्तर पर सीख प्रबल
चुप हों तो सुखों पर लगे है ग्रहण
जब आन पे आन पड़े “अर्पण”
तब तात की शान बड़ी रब से
जब जाई के घाट किए “तर्पण”
निष्प्राण है प्राण लहर तब से
© Arun अर्पण
खूबसूरत रचना।👌👌
LikeLiked by 1 person
Thanks 😊
LikeLike
Bahut achche se pta h mujhe….. speechless
LikeLiked by 1 person
🙏🙏🙏
LikeLike
शानदार
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद
LikeLike