नेताजी सरकार चलाएंगे
कल तक वो छूटभाई थे, रिजॉर्ट में छिपाए जाएंगे
बिक न जाए घोड़ा कहीं, घर में घुडसाल बनाएंगे
नोटों के बदले वोट से आगे, वो सरकार बनाएंगे
कल के नेताजी अब तो, अपनी सरकार चलाएंगे
पेट में पैसा ठूंस ठूंस कर, दल बदलू भी बन जाएंगे
मिल जाए गर पद कोई, हर घर का माल उड़ाएंगे
सीएम की कुर्सी खातिर, दुश्मन पर प्यार लुटाएंगे
कल के नेताजी अब तो, अपनी सरकार चलाएंगे
न्यूनतम साझा कार्यक्रम को, साझा न कभी कर पाएंगे
साझा है सिर्फ कमीशन ही, हर पल वो याद दिलाएंगे
जनता की ना बात करें, आंसू घड़ियाली बहाएंगे
कल के नेताजी अब तो, अपनी सरकार चलाएंगे
जनता की ना परवाह कोई, अपनी ही प्यास मिटाएंगे
बेमेल समर्थन के बदले, अपनी ढपली बजवाएंगे
पोस्ट मलाईदार मिले, फिर सारे दोष भुलायेंगे
कल के नेताजी अब तो, अपनी सरकार चलाएंगे
कार्यकाल का पता नहीं, विकास का गाना गाएंगे
जनता के नाम का रोना रो, खुद का विकास करवाएंगे
काले धन में आकंठ डूब, पुश्तों को पार लगाएंगे
कल के नेताजी अब तो, अपनी सरकार चलाएंगे
© अरुण अर्पण
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Disclaimer – इस रचना का उद्देश्य किसी भी राजनैतिक दल का समर्थन या विरोध करना बिल्कुल भी नहीं है और न ही किसी राज्य विशेष के घटनाक्रम से इसका कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध है। यह रचना पिछले कुछ समय से चली आ रही राजनैतिक कुप्रथाओं पर एक कटाक्ष है जिसे स्वस्थ मानसिकता से पढ़ा और समझा जाना चाहिए।