बस जी ही तो रहे हैं
लाखों उदास चेहरे, चुपचाप ताकते हैं
हैं भीड़ में अकेले, हमराह चाहते हैं
नहीं याद मुस्कुराना, कब खुल के खुद हंसे थे
जीनी थी जिंदगी पर, बस जी ही तो रहे हैं
दिल्ली की भीड़ अक्सर, जीवन मुझे दिखाती
दुनिया की चाल क्या है, खुल कर मुझे बताती
है भीड़ हर तरफ पर, चुपचाप सब खड़े हैं
चेहरे उदास से हैं, दिन रात बस लड़े हैं
है खोखला हृदय और जीवन की दौड़ झूठी
संतोष तो नहीं और खुद की खुशी भी रूठी
इतना भी ना पता कि कब चैन से थे खाए
बस ठूंस ही लिया था, पर रस समझ न पाए
कोशिश है कुछ जनों की, मुस्कान पर अदा है
दिल की उदासी का दर्प, नस नस में दिख रहा है
सौ में निन्यानबे ऐसे, जो स्क्रीन में डूबे हैं
सौवें अनाड़ी अर्पण, जीवन को लख रहे हैं
कोई बैठ कर ही थिरके, कोई मुस्करा रहा है
है हाथ में मोबाइल, खुद को छिपा रहा है
कुछ को समझ न आए, कि काम क्या बचा है
बस समय है बिताना, तो स्क्रॉल कर रहा है
है हर कदम शिकायत, गुस्से से सब भरे हैं
बस ऐप के सहारे, हर काम कर रहे हैं
पैरों के नीचे सीढ़ी, है आंख पर सब अंधे
कदमों के नीचे क्या है, किसी को पता नहीं है
गुस्ताख निकला अर्पण, पूछा कुटुंब कैसा
नहीं याद एक जन को, ना पता कि क्या बताएं
मालूम ये नहीं कि, किसकी तबीयत कैसी
दूजे की क्या कहें जब, खुद की खबर नहीं थी
पापा की काली दाढ़ी कब, धवल बन गई थी
मम्मी की आंखों से कब, कुछ रोशनी गई थी
भाई बहन व साथी, अब किस कदर हैं जीते
है कौन अब अकेला, किसके कदम हैं रीते
पत्नी पति और बच्चों का जग नहीं है दूजा
सब एक छत में सोते पर बात भी न होती
सबकी जरूरतों को पूरा करे जो प्राणी
चेहरे की उसकी झुर्री उनको ही ना सुहाती
किसकी जरूरत क्या है, कोई अब समझ न पाए
जब खुल के दिल मिलें ना, कोई किसको क्या बताए
चेहरों की मुस्कराहट को अर्पण तरस गए हैं
जीनी थी जिंदगी पर, बस जी ही तो रहे हैं
© अरुण अर्पण
Image credit – Google Images
Sundar rachana 👌
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Thanks 😊
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Welcome
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😊👍
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Delhi metro ke jaisa drishya 😲
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जी हां
वो एक उदाहरण है जो मैं हर दिन देखता हूं
वैसे लगभग सभी इस कसक को महसूस जरूर करते हैं
है कि नहीं
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Ji Bilkul
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😊👍
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कड़वे सच की परछाई
बखूबी आपने है दिखाई
कुछ ऐसी पक्तियां हैं
जो दिल मैं हैं समाई
यूँही दिखाते रहें दर्पण
यह सलाह मेरी अर्पण !
अत्यंत सुन्दर और तीखी कविता | समय की सुविधा से अपने ब्लॉग पर साझा करूंगा! ऐसी ही सुन्दर रचनाओं का सृजन करते रहें | साधुवाद आपको |
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बहुत बहुत धन्यवाद सर 😊
आगे भी मार्गदर्शन करते रहें 🙏
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सच कहा, यह दृश्य आज की हकीकत बन चुका है, जिंदगी तो जीनी है, पर कैसे, ये जवाब मालूम ही नही, क्या करना है, क्यो करना चाहते है, ये सब सोचने का समय ही नही जैसे। बस निराशा हर तरफ जैसे।
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माहौल ही ऐसा बन गया है कि सब लोग उलझते जा रहे हैं
और ये खाई ऐसी है कि उसे पाटना अब मुश्किल सा होने लगा है
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Very nice
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