नहीं याद दिलाना पड़ता कि, मैं वही पुराना साथी हूं
बस आहट और आवाज इन्हें, बरबस करीब ले आती है
है चंद पलों का साथ, पुनः एक दूरी खड़ी महीनों की
जब भी मिलते इनकी नजरें, बस प्रेम सुधा बरसाती हैं
इनकी उलाहना भी मिलती, कभी हठ तो कभी शरारत है
दो बोल और अहसास मिले, बस यही तो इनकी चाहत है
नहीं चाह इन्हें किसी वस्तु की, बस प्रेम की भाषा आती है
जब भी मिलते इनकी नजरें, बस प्रेम सुधा बरसाती हैं

© अरुण अर्पण
बहुत सुंदर सर जी . ये कविता मुझे बहुत पसंद आई 👌 ऐसी संवेदना के लिए धन्यवाद🙏
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सादर धन्यवाद 🙏
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स्वागतम🙏
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सही लिखा है. इनका प्रेम निश्छल होता है.
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सादर धन्यवाद 🙏😊
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