पर्यावरण दिवस और ईद की हार्दिक शुभकामनाएं
कभी झुंड निकलते दिखते थे बच्चों के भरी दोपहरी में
अब छांव कहीं भी नहीं दिखती है अंधेरे की देहरी में
कभी जंगल दिखते थे अक्सर हरियाली और मधुर फल के
अब जंगल हैं पर हरे नहीं बस कंक्रीट के ढांचे हैं
कभी कपड़े सिर पर रखते थे कि धूप लगे ना गर्मी में
अब मास्क लगा घूमें हैं सब, कहते हैं कि एलर्जी है
काले चश्मे तब बच्चों के फैशन के द्योतक होते थे
हर एक नजर अब काली है, पराबैगनी किरण की लाली से
कभी कागज के छोटे ठोंगे में दुकानदार का घर चलता
हर घर अब प्लास्टिक का है ढेर और आर्सेनिक है पानी में
कभी प्यास बुझा करती थी नदियों के इठलाते पानी से
अब घर घर में आर ओ का जल, पानी की बड़ी उदासी है
है शौक सभी को एसी का, हर घर में कार्बन भारी है
हर पल काटे हरियाले वन, पत्थर के वन अब भारी हैं
कभी दूर कहीं खलिहानों तक सब पैदल जाता करते थे
अब एक कदम कोई चले नहीं मोटर वाहन अधिकारी हैं
ढूंढो एक और हजार मिले हैं मरीज यहां अब कैंसर के
हर पेट को भोजन तो मिलता पर फास्ट फूड अब भारी है
जीवन को जरूरी हवा रही ना सांस खींचने के लायक
इतना कुकर्म किया है जब तो वाजिब हर महामारी है
अब भी है समय लगाओ वृक्ष हर बच्चे की किलकारी में
और संस्कार दो बच्चों को वो पेड़ भी उनका भाई है
हर उत्सव बने हरित पावन, मोटर वाहन को पूल करो
कुछ हिलो डुलो व मेहनत से खुद का दिमाग भी कूल करो
जितने जीवों की हत्या कर तुम पेट की भूख मिटाते हो
है हिम्मत क्या कि उतने वृक्ष तुम रोप सको किसी क्यारी में
सोशल मीडिया पर पोस्ट किया पर कर्म सुधारे नहीं कोई
फोटो से सांस नहीं मिलती कुछ वृक्ष तो पाले हर कोई
है पर्यावरण दिवस पावन और संग ईद की रौनक है
इस बार की ईदी हों पौधे, और जीवन में हर रौनक हो