- बांधों की जकड़न में दम तोड़ती नदियां
- कनाडा के मैक्गिल विश्वविद्यालय तथा World Wildlife Fund के अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा दुनिया की सबसे बड़ी नदियों पर किया गया अध्ययन
- नेचर जर्नल में प्रकाशित
- नदियों पर ताबड़तोड़ बनाए जा रहे बांध और जलाशय न केवल उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल रहे हैं बल्कि उनसे इंसानों को मिलने वाले विविध फायदों को भी तेजी से कम कर रहे हैं
- दुनिया में लंबी नदियों की कुल संख्या – 246
- 37 प्रतिशत उद्गम से अंत तक मुक्त रुप से प्रवाहित
- दुनिया में एक हजार किमी से लंबी नदियों की कुल संख्या – 91
- एक हजार किमी से लंबी नदियों में मुक्त रुप से प्रवाहित नदियाें की संख्या – 21
- निर्जन स्थानाें जैसे आर्कटिक, अमेजन बेसिन, कांगो बेसिन में बहने के कारण
- अध्ययन में शामिल नदियाें की कुल लंबाई – 1.20 करोड़ किमी
- दुनिया में नदियों पर बने बड़े बांधों की संख्या – 60 हजार
- नदियों पर प्रस्तावित या निर्माणाधीन बांधों की संख्या – 3700
- जलवायु परिवर्तन का दोहरा असर –
- बढ़ता तापमान नदियों के बहाव और जल की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है
- प्रतिकूल असर –
- अध्ययनकर्ता मिशेल थीम के अनुसार जीवनदायिनी नदियाें पर जब बांध बनाए जाते हैं तो उस पूरे बेसिन या क्षेत्र में वास्तविक असर का सही से आकलन ही नहीं किया जाता है
- नदी एक लाभ अनेक –
- ताजे जल की मछलियों का भंडार होने के कारण दुनिया के करोड़ों लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं
- तलछटों काे जमा करके डेल्टा को बढ़ रहे समुद्र तल से उंचा रखती हैं
- बाढ़ और सूखे के असर को कम करती हैं
- मृदा अपरदन को रोकती हैं
- जैव विविधता की संपत्ति को बरकरार रखने में सहयोग करती हैं
- कैसे बचेंगी नदियां –
- न्यूनतम कार्बन उत्सर्जन की तरफ बढ़ती दुनिया की अर्थ व्यवस्थाओं के लिए पनबिजली सबसे आसान रास्ता नजर आता है। तत्काल रुप से इसके विकल्प की तलाश करनी होगी जिससे पर्यावरणीय और सामाजिक नुकसान को कम किया जा सके
- आज ही बजा था स्वतंत्रता का पहला बिगुल
- 10 मई 1857 – भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत
- मेरठ की छावनी से शुरु हुआ यह संग्राम लगभग डेढ़ वर्ष तक चला
- हालांकि अंग्रेजों ने इसे कुचल दिया किंतु इसके बाद भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश क्राउन के पास चला गया
- समुद्र में बढ़ा रेडियोएक्टिव कार्बन का स्तर
- पृथ्वी की सबसे गहरी समुद्री सतह मानी जाने वाली मारियाना ट्रेंच के जीवों में रेडियोएक्टिव कार्बन की मौजूदगी पाई गई है
- पश्चिमी प्रशांत महासागर में मारियाना द्वीप समूह से 200 किमी पूर्व में स्थित इस ट्रेंच की गहराई करीब 11 किमी है
- यह रेडियोएक्टिव कार्बन पिछली सदी में किए गए परमाणु परीक्षणों के कारण वातावरण में फैला था
- परमाणु बमों के परीक्षण के कारण बना कार्बन– 14 वातावरण से नीचे गिरते हुए समुद्र की सतह के जल में मिल गया। उन दशकों में समुद्री सतह पर मौजूद जीवों की कोशिकाओं के निर्माण में कार्बन – 14 ने भूमिका निभाई। परमाणु परीक्षणों की शुरुआत के कुछ वर्षों में वैज्ञानिकों ने समुद्री जीवों का कार्बन का स्तर बढ़ा हुआ पाया था।
- वैज्ञानिकों ने पाया कि बहुत कम समय में ही रेडियोएक्टिव कार्बन का असर समुद्र में कई किमी नीचे तक पहुँच गया
- पृथ्वी की सबसे गहरी समुद्री सतह मानी जाने वाली मारियाना ट्रेंच के जीवों में रेडियोएक्टिव कार्बन की मौजूदगी पाई गई है
साभार– दैनिक जागरण (राष्ट्रीय संस्करण) दिनांक 10 मई 2019
What a data of un-ambiguity and preserveness of valuable experience concerning unexpected emotions.
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