लोकतंत्र का महापर्व – चलो वोट करें
सुनो सुनो मैं कहता हूं एक बात पते की बहुत बड़ी
जाम निज़ाम सभी बदले हैं रंग लो आई चुनावी घड़ी
सुनिए गुनिए सब बातों को और वोट दीजिएगा मन से
वादों की लिस्ट बड़ी लंबी पर मत लड़िए अपने जन से
हिचकोले खाती गाड़ी पर बैठे कोई नेता आएंगे
हो भले स्वयं ही सत्ता में पर दोष विपक्ष पर ढाएंगे
कोई नेताजी ना भूल सके माया कुर्सी की जीवन में
खुद पांव कब्र में पाएंगे पर वोट मांगने आएंगे
कोई कर्ज करेगा माफ़ तो कोई महल बनाए सपनों का
कोई गाली देकर ही चाहे पाना साम्राज्य पांच वर्षों का
कोई देगा हर घर को सर्विस पर कैसे ये न बताएंगे
गर पूछ लिया कोई पिछली बात तो सरपट भागे जाएंगे
कोई सब कुछ फ्री में दे देगा पर पैसे कहां से लाएगा
सब फ्री देने के चक्कर में जनता पर टैक्स बढ़ाएगा
कोई इतना अंधा भी होगा जिसे देश नजर ना आएगा
सीमा प्रहरी के शौर्य का भी वो सबूत मांगता आएगा
सब चोर कहें एक दूजे को पर साहूकार कहें किसको
जब बात चले है कुर्सी की तो पाप भी पुण्य लगे सबको
कोई धर्म कर्म की बात करे कोई विकास का नारा लाएगा
कोई ऐसा मानुष भी होगा जो मशीन अनोखी लगाएगा
कोई जाति के नाम बुने सपना एक दूजे से लड़वाएगा
कुर्सी की अंधीदौड़ में कोई दुश्मन को गले लगाएगा
कोई बिन पेंदी का लोटा बन खुद के ही बोल भुलाएगा
भाषा की मर्यादा का हरण खुलेआम किया ही जाएगा
बाजार सजा है भारत में और नाम लोकतंत्र का आएगा
कोई दारू, मुर्गा, धनबल से जनता का वोट जुटाएगा
वो सोच अभी भी नहीं बदली जनता को मूर्ख समझने की
जनता का वोट ऐसे जन को दिन में तारे दिखलाएगा
कुछ शब्द सुना है बचपन से, पर परिभाषा नहीं जान सका
करते हैं बात विकास की सब, पर किसका ये न जान सका
बिना कर्म किए वो रातों रात अरबों के महल उठाते हैं
और गांव में बुधिया के बच्चे बिन भोजन ही सो जाते हैं
इन जाति धर्म के झगड़ों में एक जिम्मेदारी याद रहे
चुनना उसको जो हो बेहतर, है गैर जाति का ही वो भले
जो हो शिक्षित और समझदार, जो सेवा भाव से आया हो
और जड़ देना तुम जूते चार, गर वोट खरीदने वो आया हो
सबको सुनना, हर बात परख कर एक फैसला कर लेना
देना तुम वोट किसी को भी पर ध्यान देश का धर लेना
एक वोट तुम्हारा लिख सकता तकदीर देश की पांच साल
बस योग्य बने कोई सरकार जिससे खुद न हो कोई मलाल