महिला दिवस : कितना सार्थक
आज अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। सामान्य अर्थ में यह दिन महिलाओं को समाज में समानता, इज्जत और सशक्तिकरण प्रदान करने के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
बड़ी विडम्बना की बात है न कि लैंगिक आधार पर अस्तित्व को महसूस करने के लिए भी आज हमें एक दिन विशेष की जरूरत पड़ती है!
सृष्टि के रचयिता ने जब पुरुष और स्त्री के अस्तित्व की संकल्पना के साथ सृष्टि का निर्माण किया होगा तो अवश्य ही सह अस्तित्व के साथ जीवन यापन की परिकल्पना के साथ अपना कार्य प्रारम्भ किया होगा।
गर्भधारण के बाद जब जीव निर्माण की प्रक्रिया आरंभ होती है तो वह कहीं और नहीं बल्कि एक स्त्री के ही गर्भ में होती है। जन्म लेने के तुरंत बाद जो सांसारिक प्राणी सबसे पहले सामने होता है वह एक मां के रूप में एक स्त्री ही होती है। उस समय वह यह भूल चुकी होती है कि अभी थोड़ी देर पहले ही उसने एक मृत्युतुल्य कष्ट सहने के उपरांत अपने बच्चे को जन्म दिया है। उसे यह भी याद नहीं रहता कि बच्चे के जन्म की प्लानिंग के साथ ही वह अपना अतिप्रिय शारीरिक सौन्दर्य भी दांव पर लगा चुकी होती है।
जीवन की हर अच्छी बुरी परिस्थिति को सहकर जो मां अपने बच्चों को जीवन का हर सुख देने के लिए जान की बाजी तक लगा देती है, वह भी एक स्त्री ही होती है।
रक्षाबंधन की सुबह जिस बहन की राखी का इंतजार हर भाई को होता है, वह बहन भी तो एक स्त्री ही होती है न! जो बहन दुनिया की हर ताकत से लड़ झगड़कर भी अपने भाई के हर कष्ट को खुद उठाने के लिए तत्पर रहती है, वो भी एक स्त्री ही होती है।
एक सुंदर और सुयोग्य बहु हर मां बाप का सपना होती है जो उनकी वंश बेल को आगे बढ़ा सके और आने वाली पीढ़ी में पारिवारिक मूल्यों और संस्कारों का संचार कर सके। मजे की बात तो यह है कि वो बहु भी एक स्त्री ही होती है।
जीवनसाथी के रूप में लगभग हर पुरुष की पहली पसंद भी एक स्त्री ही होती है जिसमें वह अपने और अपने परिवार के लिए सुख और हर्ष की संभावनाओं का आधार ढूंढ़ता है।
पुत्रों द्वारा परित्यक्त माता पिता को बुढापे में हर मुमकिन सेवा प्रदान करने वाली पुत्री भी एक स्त्री ही होती है।
कुल मिलाकर जिस स्त्री की मैं आज बात कर रहा हूं उसके बिना तो पुरुष का जन्म और जीवन दोनों ही संभव नहीं है। यदि वह स्त्री इतना महत्व रखती है तो उसके अस्तित्व को स्त्री के रूप में ही स्वीकार करने में क्या दिक्कत है भाई?
अक्सर समाज में स्त्री को एक अबला के रूप में देखा जाता है। आइए जरा इस तथ्य की भी पड़ताल कर लेते है-
कभी हाथ में 1 किलो की थैली 9 घंटे तक लगातार उठा कर देखिएगा, आपको एक मां के नौ महीनों की परिश्रम का शायद कोई अंदाजा मिल सके।
एक हल्की सी खरोंच को चार दिन देखने वाले लोग उस दर्द का अंदाजा लगाने की कोशिश करें जो बच्चे के जन्म के समय एक मां सहती है।
परिवार पर कोई आपत्ति आती देख अपने जीवन की बाजी लगा देने वाली स्त्री आखिर किस अर्थ में अबला हुई भाई?
हां, शारीरिक स्तर पर स्त्री का शरीर और मन जरूर कोमलता प्रधान होता है लेकिन इसमें भी मानव समाज की भलाई ही तो छिपी हुई है। अपने जीवन में जितने शारीरिक और मानसिक बदलावों के दौर से एक स्त्री गुजरती है उसका अनुभव की कल्पना भी शायद पुरुष नहीं कर सकते।
इन सबके बावजूद आज महिला समाज में हर क्षेत्र में आगे बढ़कर प्रतिनिधित्व कर रही है। नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है। पुरुषों के एकाधिकार वाले क्षेत्रों में भी अब महिलाएं अपना वर्चस्व स्थापित करने लगी हैं। खेल, सेना, नेतृत्व, प्रबंधन, नागरिक सेवा समेत लगभग हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी क्षमता का लोहा मनवाया है तो आखिर उन्हें अबला कहने का आधार ही कहां शेष बचता है?
परंतु, इन समस्त बातों के बीच एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि महिलाओं को अभी भी वह स्थान नहीं मिल पाया है जिसकी वे वास्तविक हकदार हैं।
दो लोगों की लड़ाई में गाली हमेशा मां बहन की दी जाती है। ये कहां का संस्कार है बंधु? मां सिर्फ मां होती है वो चाहे आपकी हो या किसी और की, तो फिर मां जैसे पावन स्थान पर विराजमान महिला को अपशब्द कहने का अधिकार किसी को कब से मिल गया?
राह चलती लड़की को देखकर अपनी गंदी मानसिकता का प्रदर्शन खुलेआम करने वाले शोहदों से मेरा एक बड़ा ही साधारण सा सवाल है कि मुंह पर बंधे दुपट्टे के पीछे का चेहरा अगर उनकी अपनी बहन का हुआ तो क्या वो तब भी उसी भाषा का प्रयोग करेंगे?
टीवी पर चल रहे हर सौन्दर्य प्रसाधन के विज्ञापन के पीछे यही प्रचारित किया जाता है कि अमुक उत्पाद का प्रयोग करने से लड़कियों की बारिश होने लगेगी। यह दिखाकर आखिर हम किस संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं?
लाउडस्पीकर पर सरेआम बज रहे अश्लील गानों पर पाबंदी आखिर क्यों नहीं लग पा रही है?
खुद अनेकों अफेयर रखने वाले लोग आखिर किस हक से अपनी पत्नी के कौमार्य की परख करने की इच्छा रखते हैं जबकि उन्हें बखूबी पता है कि आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में उनकी इस सोच के लिए कोई भी स्थान शेष नहीं बचा है?
पुत्री की पढ़ाई सिर्फ इस कारण से क्यों बंद करा दी जाती कि अपने गांव या पास के ही किसी गांव में आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज उपलब्ध नहीं हैं? अंततः एक वर्ग ऐसा भी है जो पुत्री को सिर्फ इसलिए पढ़ाता है ताकि कोई पढ़ा लिखा परिवार विवाह के समय उसे रिजेक्ट न कर दे।
उम्र के साथ होने वाले हार्मोनल बदलाव और सृष्टि की संरचना के आवश्यक अंग माहवारी को लेकर आज भी समाज में हीन भावना क्यों व्याप्त है? इसे जीवन के महत्वपूर्ण अंग के रूप में स्वीकारने में आखिर बुराई ही क्या है?
महिलाओं के हित का दावा करने वाले कुछ वर्ग महिलाओं को कमजोर सिद्ध करते रहने का प्रयास बार बार क्यों करते रहते हैं जबकि उन्हें भी पता है कि सह अस्तित्व के सिद्धांत पर टिकी प्राकृतिक संरचना के मूल में स्त्री और पुरुष दोनों का ही अस्तित्व है?
आज के युवा वर्ग में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ने के साथ ही एक असुरक्षा की भावना भी बलवती होती जा रही है जो किसी भी समाज के लिए एक स्वस्थ परिस्थिति नहीं है। रिश्तों की अनिश्चितता से भयभीत युवा विवाह जैसी सामाजिक संस्था का बहिष्कार करने के प्रति उद्दत दिखता है।
अभी भी समय है जब हमें यह समझना ही होगा कि स्त्री कोई वस्तु नहीं है जिसे जब चाहा, स्वादानुसार उपभोग कर लिया। मां, बहन, पुत्री और पत्नी जैसी सम्मानित और महत्वपूर्ण स्थान को प्राप्त स्त्री को माल समझने की भूल कदापि न करें और उनके हितों को समान और समुचित महत्व दें। सभ्य समाज को महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखने का कोई अधिकार नहीं है। उन्हें वह सुरक्षा का भाव प्रदान किया जाय ताकि किसी भी समय या आपत्तिकाल में उन्हें अकेले बाहर निकलने में डर का अनुभव न हो।
याद रहे कि सड़क पर जाती अकेली लड़की माल या मौका नहीं बल्कि जिम्मेदारी होती है। उसे सम्मान और सुरक्षित रूप से घर पहुंचने दें। मत भूलें कि वो भी किसी के घर की इज्जत और उम्मीदों का एक सितारा हो सकती है जिसके दम पर एक पूरा परिवार दो वक्त की रोटी खा पाता है।
“यत्र नार्यस्तू पूज्यंते, रमंते तत्र देवता” जैसे आदर्श वाक्य पर चलने वाले देश में मां को मां ही रहने दें, उसे माल कहकर अपमानित करने का पाप न करें। महिला दिवस की सार्थकता तभी है जब जीवन के हर पल में नारी खुद को सम्मानित और सशक्त महसूस करे।
अंत में आप सभी माताओं, बहनों और मित्रों को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की अनंत शुभकामनाएं एवं सादर अभिनन्दन।
Bahut khub Sir…
Wakai women’s day sarthak tabhi hai jab hum apni soch me badlaw layenge..
Thank you….
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Thanks and wish you a very happy and memorable day ahead
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औरतों को सम्मानित करनेवाली आपकी यह रचना बेशक सराहनीय है। इस ब्लॉग की रचना पर मैं अपनी आभार प्रदान करती हूँ। 👏👏👏👏👏
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Thanks Ma’am 🙏
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