एहसासों का “आलिंगन”
दुनिया का सब सुख फीका है, सब कुछ होता लघुप्राय जहां
जो जननी का ही आंचल है, पाया सबने था प्राण जहां
ढोती नौ मास, सहे हर पीर, वो देख देख हर्षाती है
मां का आलिंगन ही होता, जीवन की प्रथम अनुभूति है
कंधे पर जिसके बैठ बैठ, देखा हमने है जहां सारा
जिसकी छाया सबसे पावन, जीवन सींचा जिसने सारा
गर कभी पड़ी कोई ठोकर, ले आलिंगन था सहाय सदा
वो पिता ही थे जो हरते रहे, सब कष्ट हमारे यदा कदा
रहती घर में जिससे रौनक, जो सबकी आंख का तारा है
गर चुप होती तो लगे ऐसा, घर में कोई ग़म का मारा है
परिवार का है अभिमान वही, भाई की सच्ची दोस्त वही
आलिंगन बहन का कर देता, दुनिया के सारे सवाल सही
बचपन में खेल खिलौनों की, दुनिया से इतर जो ध्यान धरे
खुदा बच्चा है फिर भी अपने भाई बहनों को संवार सके
वो है आलिंगन अग्रज का, देता हर पल संसार का सुख
मां पिता के बाद वही करता, है दूर अनुज के सारे दुख
आलिंगन हो जो सखा का तो संसार लगे हर वक्त नया
आलिंगन हो पत्नी का तो जीवन यापन का सूत्र बंधा
आलिंगन हो संतान का तो दुनिया का हर सुख मिल जाए
आलिंगन हो इन सबका तो घर में ही स्वर्ग उतर आए
कुछ लोग भी हैं इस दुनिया में, जिनको न मिला सम्मान कभी
आलिंगन को वो क्या जाने, उनको न मिला है प्यार कभी
दो वक्त की रोटी पाने को, जीवन जोखिम में भरते हैं
जननी और जनक का पता नहीं, बस जीते हैं, दम भरते हैं
कुछ लोग भी हैं इस दुनिया में, जिनके थे सारे संगी सखा
काया जबसे लाचार हुई, फिर उनकी तरफ कोई न तका
जीवन भर की सारी पूंजी से, किया खड़ा सपनों का मकां
पर उन्हीं सपनों के अपनों ने, वृद्धाश्रम में था ला पटका
कुछ लोग भी हैं इस दुनिया में, जो नहीं दिखते सबके जैसे
इसमें उनका कुछ दोष नहीं, पर बनते पात्र ठिठोली के
दिव्यांग जनों की पीड़ा का, करो बोध लगे जब चोट तुम्हें
बस प्यार भरे बर्ताव से ही, उनको जीवन में राह दिखे
रहती है एक सुंदर लड़की, मेरे तेरे ही पास कहीं
हर आलिंगन से डरती है, हर ले ना कोई लाज कहीं
घर से निकले तो शब्द बेध कर, जाते उसके तन मन को
अपने घर दिखती मां सबको, बाहर क्यों माल कहे उसको
आलिंगन के व्यवहार से है, अचरज में आज पड़ा अर्पण
कभी सुख देता, कभी प्यार करे, कर देता है सब कुछ अर्पण
कभी बन जाता दुख का कारण, कर लेता लज्जा का ये हरण
फिर भी सबकी ये चाहत है, सब चाह करें इसका ही वरण
करो आलिंगन उनको जो हैं, इससे अंजान सदा से दूर
करो आलिंगन जब अंतर्मन, काम वासना से हो दूर
करो आलिंगन कि कभी कोई ना रोने को मजबूर रहे
पर आलिंगन न बने दुख का, सागर, ये सदा ही बोध रहे
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी बड़े खुश रहते आपसे। अच्छा लिखते हैं।
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हमारा सौभाग्य होता अगर वह आज हमारे बीच होते। बहुत कुछ सीखने को मिलता उनसे। आपका बहुत बहुत आभार 😊
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