ये कैसा प्रेम
आज मैं एक ऐसे विषय के साथ उपस्थित हुआ हूं जो आप सबने अपने जीवन में कहीं न कहीं महसूस जरूर किया होगा।
आजकल प्रेमिजनों के प्रेम सप्ताह का चरम हर जगह दृष्टिगोचर है। किन्तु वास्तव में प्रेम की परिभाषा क्या है?
अगर प्रेम वो है जिसमें पहली ही नजर कोई अपना लगने लगता है तो वह एक दूसरे की गलती तो क्षमा कर देने का गुण क्यों नहीं दिखा पाता?
अगर पति पत्नी का संबंध ही वास्तविक प्रेम है तो अक्सर ही धन या किसी वस्तु के प्राप्त न होने पर खटास क्यों उत्पन्न हो जाती है?
अगर किसी के गुणों से प्रभावित नजरिया ही प्रेम है तो अवगुण सामने आने पर कटुता क्यों उत्पन्न हो जाती है?
अगर सुंदरता पर आसक्ति ही वास्तविक प्रेम है तो समय बीतने के साथ साथ नीरसता और अनासक्ति की भावना कहां से आ जाती है?
अगर रिश्ते ही प्रेम की गारंटी देते हैं तो अक्सर सबसे पहले दुःख के कारण रिश्ते ही क्यों होते हैं?
अगर एक दूसरे के प्रति निष्काम समर्पण ही प्रेम है तो वो आखिर दुनिया से विलुप्त क्यों होता जा रहा है?
ऐसे अनेकों कारण हैं जो अक्सर ही प्रेम के नाम पर कुछ कटु अनुभव करा जाते हैं तो क्या प्रेम की परिणति दुःख ही है?
अभी कुछ दिन पहले ही एक उदाहरण मेरे सामने आया जहां एक दूसरे से प्रेम के वशीभूत एक जोड़े ने एक दूसरे को जीवनसाथी बनाया किन्तु एक महीना भी नहीं बीता और मुंहदिखाई के पैसे न मिलने पर लड़की को उसके ही पति ने बहुत बुरी तरह पीटा। उसका मोबाइल उससे छीन लिया गया ताकि वो किसी को कुछ बता भी न सके।
हम अक्सर सुनते रहते हैं कि किसी लड़की का चेहरा सिर्फ इसलिए झुलसा दिया जाता है क्योंकि उसने किसी सनकी का प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया था या फिर उसके परिवार ने उसकी शादी कहीं और तय कर दिया था।
ऐसे ही अनेक उदाहरण सामने आते हैं जहां प्रेम के नाम पर घृणित हिंसा का प्रदर्शन किया जाता है। तो क्या आज के युग में प्रेम एक भावना से ज्यादा सिर्फ प्रदर्शन का माध्यम बनता जा रहा है?
जो मां बाप अपने निश्छल प्रेम के वशीभूत संतान को जीवन का सारा सुख देने की कोशिश करते हैं, वही मां बाप अपने बुढ़ापे में वृद्धाश्रम क्यों पहुंचा दिए जाते हैं?
जीवन भर परिवार के लिए सारे संसाधन जुटाने वाला व्यक्ति कालांतर में उसी परिवार द्वारा इस स्थिति में क्यों पहुंचा दिया जाता है जहां वह यह सोचने पर विवश हो जाता है कि उसने पूरी उम्र परिवार के लिए जो कुछ किया वो एक गलती थी? उसकी अपनी ही संतान उसे कोसती हुई नजर आती है और उसे सार्वजनिक रूप से मूर्ख घोषित कर दिया जाता है। सबसे बड़ा दुखदाई क्षण तो तब होता है जब वही परिवार उससे एक प्रश्न कर जाता है कि आपने हमारे लिए किया ही क्या है?
निर्विवाद रूप से प्रेम की भावना ईश्वर द्वारा प्राणी जगत को दिया गया सबसे बहुमूल्य उपहार है। प्रेम की भावना को अक्सर स्त्री पुरुष संबंधों से जोड़कर देखा जाता है जबकि वास्तविकता तो यह है कि प्रेम एक सर्वव्याप्त सत्य है जिसके लिए किसी रिश्ते के नाम की भी कोई आवश्यकता नहीं होती। कई बार कुछ अनजान लोग आपके लिए कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसकी उम्मीद आप अक्सर खून से जुड़े रिश्तों से ही कर पाते हैं। जाहिर सी बात है कि उन लोगों को आपसे कोई उम्मीद नहीं होती। वो तो बस अपना काम कर जाते हैं और आप यही सोचते रह जाते हैं कि उनका प्रेम वास्तविक था या उन लोगों का जो आपके अच्छे दिनों में तो हमेशा साथ रहे लेकिन आपके दुर्दिनों में मुंह मोड़ गए।
प्रेम की भावना न मोह से जुड़ी है और न ही किसी प्रकार की उम्मीद से। प्रेम तो उस अदा का नाम है जो हर जगह सिर्फ और सिर्फ मुस्कान बिखेरती है और दुखों को दूर करने का काम करती है। प्रेम खुद भी दुःखी हो जाता है जब उसे उम्मीद से जोड़कर देखा जाता है क्योंकि उस समय वह अपने वास्तविक स्वरूप में नहीं होता बल्कि उम्मीद के दोष को छिपाने का एक कारक मात्र होता है।
जहां नाम, वहां उम्मीद और जहां उम्मीद, वहीं दुख। प्रेम तो बस प्रेम है जिसका अन्य कोई नाम नहीं। वह न रिश्तों के नाम का मोहताज है और न ही किसी उद्देश्य या वस्तु की प्राप्ति का। इन सभी के लिए तो समाज में अन्य नाम पहले से प्रचलित हैं।
और भी बहुत से कारण और उदाहरण हैं जो प्रेम के नाम पर अक्सर उठाए और बताए जाते हैं। हमारे आज की चर्चा का विषय ही एक चर्चा है। आपके रचनात्मक कमेंट का हमेशा स्वागत है। आज मैं आपको आमंत्रित करता हूं कि इस परिचर्चा में खुले मन से भाग लें और ऊपर उठाए गए प्रश्नों का उत्तर ढूंढने की कोशिश करें।
सादर।